Wednesday, May 4, 2016

अक़ीदतुत   तहाविय्या

Bismillahirrahmanirrahim

📚  अक़ीदतुत   तहाविय्या  📚
  
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एहले इल्म जानते हैं कि इमाम बुख़ारी رحمت اللہ علیہ ने असहुल कुतब 
बाद किताबुल्लाह (बुख़ारी) का आग़ाज़ इरशादे नबी करीम صلى الله عليه وسلم ने (انّما الاعمالُ بِالّنِیات) से फ़रमाया जिसकी असल वजह ये है कि जुमला आमाल हयात की सेहत और मक़बूलियत का इन्हिसार (निर्भरता) नीयत की दुरुस्ती पर मुनहसिर है।  

हर अमल चाहे वो इन्फ़िरादी (व्यक्तिगत) और निजी नौईयत का हो या इज्तिमाई या क़ौमी नौईयत का, अगर वो ख़ालिस अल्लाह की रज़ा के लिये है तो वो छोटे से छोटा होने के बावजूद ख़ुशनुदीये इलाही, जहन्नुम से निजात और जन्नत में दाख़िल होने का ज़रीया होगा। 

लेकिन अगर ख़ालिस रज़ाऐ इलाही अमल का मुहर्रिक नहीं है तो (خَسِرَ الدُّنیاَ و الاَخِرَۃِ) से छुटकारा नामुम्किन ।

अब गुज़ारिश ये है कि ज़ेरे नज़र मजमूऐ का वाहिद मक़सद मुसलमानों के अक़ाइद की इस्लाह है जिनका क़ुरआन-ओ-सुन्नत के मुताबिक़ होना नीयत पर भी मुक़द्दम है अगर अमल और नीयत दोनों दुरुस्त हों मगर अक़ाइद दुरुस्त ना हों तो बावजूद नीयत और अमल दोनों की दुरुस्ती और सेहत के, दिन और रात की जुमला इबादात और आमाले हासिल, बल्कि दुनिया और आख़िरत की हलाकत और तबाही और ग़ज़बे इलाही का पेश ख़ेमा हैं, इसीलिये क़ुरआने करीम ने मुतालिबा अमल के हर मौक़ा पर (عَمِلُوا) से पहले (اٰمَنُوا) (सेहते अक़ाइद) की शर्त लगा दी है।

इसी शिद्दत ज़रूरत और एहमीयत के पेशे नज़र है, ये किताब आसान अल्फाज़ में किश्तों में पोस्ट की जा रही है।

ताकि इस से मुकम्मल तौर पर फायदा हाँसिल किया जा सके।

अल्लमा ज़हबी رحمت اللہ علیہ तारीख़ कबीर में लिखते हैं “इमाम तहावी رحمت اللہ علیہ बहुत बड़े फ़क़ीह, मुहद्दिस, हाफ़िज़, मारूफ़ शख़्सियत, सका रावी, जय्यद आलिम और ज़ीरक इन्सान थे।“

अल्लामा हाफ़िज़ इब्ने कसीर अल बिदायाह वल निहाया में लिखते हैं “अल्लामा तहावी जय्यद आलिम और बुलंद पाया मुहद्दिस थे।“

मुफ़्तीऐ आज़म पाकिस्तान हज़रत मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद शफ़ी साहिब फ़रमाते हैं : "अह्ले इल्म पर अक़ीदाऐ तहाविया का मर्तबा और मुक़ाम छुपा नहीं जिसमें उन्होंने अहले सुन्नत वल जमाअत के अक़ाइद को जमा किया है।

यही हज़राते सहाबा व ताबईन के अक़ाइद हैं, इस किताबचे में ऐजाज़ व इख़्तिसार के साथ तमाम ज़रूरी अक़ाइद आ गये हैं, ये किताबचा इस काबिल है कि हर तालिबे इल्म उसे ज़बानी याद करे"
हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद यूसुफ़ बनूरी رحمت اللہ علیہ फ़रमाते हैं ।

👉🏿"अक़ीदाये तहाविया" हमारे अइम्माऐ हनफिया के अक़ाइद के बयान में सबसे मुस्तनद किताब है, इमामुल अस्र हज़रत कशमीरी رحمت اللہ علیہ हनफिया की अक़ाइद पर तहरीर करदा तमाम किताबों पर इस को फ़ौक़ियत देते थे।"

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इमाम अबु हनीफा رحمت اللہ علیہ से ताल्लुक़े ख़ातिर
अल्लामा तहावी رحمت اللہ علیہ इमाम अबु हनीफा رحمت اللہ علیہ के तर्ज़े इस्तदलाल  से बहुत ज़्यादा मुतास्सिर थे, इसलिये उम्र भर हनफ़ी मसलक की नश्रो इशाअत (प्रचार प्रसार) करते रहे, इसी बिना पर आपको हनफ़ी मसलक का बहुत बड़ा वकील समझा जाता था।

1⃣अल अक़ीदतुल तहाविया: बज़ाहिर ये छोटी सी किताब है लेकिन फ़ायदे के एतबार से अज़ीमतर किताब समझी जाती है।

इस छोटी सी किताब के बारे में औलमा का तबसरा ये है कि: "इमाम तहावी رحمت اللہ علیہ ने अक़ीदतुल तहाविया में हर वो चीज़ जमा कर दी है जिसकी हर मुसलमान को ज़रूरत थी"

इसके अलावा इमाम तहावी رحمت اللہ علیہ की मशहूर कुतुब ये हैं

2⃣ मआनी अल आसार

3⃣ मुश्किल अल आसार

4⃣ अहकामुल क़ुरआन

5⃣अलख़ुस्सर

6⃣अल शूरूत

7⃣शरह अल जामे अल कबीर

8⃣शरह अल जामे अल सग़ीर

9⃣ अल नवादर अल फ़क़ीहा

वफ़ात: ज़िल क़ादह ৃ 329 हिजरी बरोज़ जुमेरात को वफ़ात पाई, और क़ुरूफ़ा नामा बस्ती में दफन किये गये । رحمہ اللہ رحمتہ واسعتہ

इमाम तहावी رحمت اللہ علیہ फ़रमाते हैं :

Bismillahirrahmanirrahim

पोस्ट : 2 :
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इमाम तहावी رحمت اللہ علیہ फ़रमाते हैं :

तौफिक़े ऐज़दी के साथ तौहीदे बारी तआला से मुताल्लिक़ हम इस ऐतक़ाद का ऐलान करते हैं ।

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(1) إن الله واحد لا شريك له: نقول في توحيد الله معتقدين بتوفيق الله
यक़ीनन अल्लाह سبحانه وتعال एक है उस का कोई शरीक नहीं


(2)ولا شيء مثله
कायनात की कोई भी चीज़ उस की जैसी नहीं


(3)ولا شيء يعجزه
और ना ही कोई चीज़ उसे आजिज़ कर सकती है


(4)ولا إله غيره
उस के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं


(5)قديم بلا ابتداء، دائم بلا انتهاء
वो हमेशा से है और हमेशा रहेगा


(6)لا يفنى ولا يبيد
वो ज़ात ना फ़ना होगी और ना ही ख़त्म होगी


(7)ولا يكون إلا ما يريد
इस जहां में वही कुछ होता है जो अल्लाह चाहता है


(8)لا تبلغه الأوهام
इन्सानी ख़्यालात उस की हक़ीक़त तक नहीं पहुंच सकते


(9)ولا تدركه الأفهام
और ना ही अक़्ल उस का इदराक कर सकती है


(10)ولا يشبه الأنام
मख़लूक़ के साथ उस की कोई मुशाबहत नहीं


(11)حي لا يموت، قيوم لا ينام
वो सदा ज़िंदा है उसे कभी मौत नहीं आएगी, वो मुहाफ़िज़ है उसे नींद नहीं आती


(12)خالق بلا حاجة
वो सारी कायनात का पैदा करने वाला है हालाँकि उसे उस की कोई ज़रूरत नहीं


(13)رازق بلا مؤنة
वो बग़ैर किसी मुश्किल के सबको रोज़ी पहुंचाने वाला है


(14)مميت بلا مخافة، باعث بلا مشقة
वो सबको मौत देने वाला है बग़ैर किसी के डर के


(15)ما زال بصفاته قديما قبل خلقه ، لم يزدد بكونهم شيئا لم يكن
قبلهم من صفاته
मख़लूक़ को पैदा करने के बाद उस के किसी वस्फ़ में इज़ाफ़ा नहीं हुआ


(16)وكما كان بصفاته أزليا كذلك لا يزال عليها أبديا
वो अपनी सिफ़ात के साथ हमेशा से है और हमेशा रहेगा


(17)ليس بعد خلق الخلق استفاد اسم الخالق
मख़लूक़ को पैदा करने के बाद उस का नाम ख़ालिक़ नहीं पड़ा बल्कि वो मख़लूक़ को पैदा करने से पहले भी ख़ालिक़ था, यानी वो अपनी ख़ूबीयों के साथ हमेशा से है और हमेशा रहेगा


(18)ولا بإحداث البرية استفاد اسم الباري
और मख़लूक़ को पैदा करने की वजह से उसने अपना नाम बारी नहीं रखा


(19)له معنى الربوبية ولا مربوب، ومعنى الخالقية ولا مخلوق
उसके लिए पालने की सिफ़त हमेशा से है और हमेशा रहेगी चाहे पलने वाला हुआ या ना हुआ उस के लिए ख़ालिक़ होने की सिफ़त हमेशा से है और हमेशा रहेगी चाहे मख़लूक़ हो या ना हो।
जब कोई पलने वाला न था जब भी अल्लाह पाक था


(20)وكما أنه محيي الموتى بعدما أحياهم استحق هذا الاسم قبل إحيائهم، كذلك استحق اسم الخالق قبل إنشائهم
जैसा कि वो मुर्दों को ज़िंदा करने के बाद मुहयी (ज़िंदा करने वाला) कहलाता है, उसी तरह वो ज़िंदा करने से पहले भी इस नाम का मुस्तहिक़ है और इसी तरह मख़लूक़ को पैदा करने से पहले ही ख़ालिक़ होना उस की शान है

बिस्मिल्लाहिर्रह्मानिर्रहिम

     ☝☝  ☝  ☝       पोस्ट :3 :

(21)ذلك بأنه على كل شيء قدير،وكل شيء إليه فقير،وكل أمر عليه يسير،لا يحتاج إلى شيء،ليس كمثله شيء،ليس كمثله شيء، وهو السميع البصير
इसलिए कि वो हर चीज़ पर क़ादिर है और हर चीज़ उस की मुहताज है।
हर काम उस के लिए आसान है।
वो किसी चीज़ का मुहताज नहीं।
उस की कोई मिसाल नहीं वो सुनने वाला और देखने वाला है
(22)خلق الخلق بعلمه

अल्लाह سبحانه وتعال ने मख़लूक़ को अपने इल्म से पैदा किया
(23)وقدر لهم أقدارا
और अल्लाह سبحانه وتعال ने मख़लूक़ की तक़दीरें मुक़र्रर कीं

(24)وضرب لهم آجالا
अल्लाह سبحانه وتعال ने मख़लूक़ के लिए अजल (आख़िरी वक़्त) मुक़र्रर किया

(25)لم يخفَ عليه شيء قبل أن يخلقهم،وعلم ما هم عاملون
قبل أن يخلقهم
मख़लूक़ को पैदा करने से पहले भी उससे कोई चीज़ छुपी हुई नहीं थी और वो लोगों को पैदा करने से पहले ही ये जानता था कि वो अपनी ज़िंदगी में क्या कुछ करने वाले हैं

(26)وأمرهم بطاعته، ونهاهم عن معصيته
अल्लाह سبحانه وتعال ने लोगों को अपनी फ़रमांबर्दारी का हुक्म दिया है उन्हें अपनी ना-फ़रमानी से रोका है

(27)وكل شيء يجري بتقديره ومشيئته،ومشيئته تنفذ لا مشيئة للعباد إلا ما شاء لهم، فما شاء لهم كان، وما لم يشأ لم يكن
कायनात की हर चीज़ उस की तक़दीर और इस के इरादे के मुताबिक़ चलती है।
जो अल्लाह سبحانه وتعال चाहता है वही होता है
और जो नहीं चाहता वो नहीं होता। और उसी की चाहत चलती है।
बंदे के चाहने से कुछ नहीं होता मगर ये कि अल्लाह भी चाह ले, तो जो अल्लाह चाहता है वो हो जाता है और जो नहीं चाहता वो नहीं होता

(28)يهدي من يشاء، ويعصم ويعافي فضلا
अल्लाह سبحانه وتعال जिसको चाहे अपने फज़लो करम से हिदायत देता है, जिसकी चाहे हिफ़ाज़त करता है और जिसको चाहे आफ़ियत देता है

(29) ويضل من يشاء، ويخذل ويبتلي عدلا
और वो अदलो इंसाफ की बिना पर जिसे चाहता है गुमराह, रुस्वा और आज़माईश में मुब्तिला कर देता है

(30)وكلهم يتقلبون في مشيئته بين فضله وعدله
तमाम लोग अल्लाह سبحانه وتعال की चाहत के मुताबिक़ उस के फज़लो करम और अदलो इंसाफ के बीच ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं

  (31)وهو متعال عن الأضداد والأ نداد

वो ज़ात हम-सरों और शुरका से बलंद तर है

(32)لا رادَّ لقضائه،ولا معقب لحكمه، ولا غالب لأمره 
अल्लाह سبحانه وتعال के फ़ैसले को कोई टाल नहीं सकता, उस के हुक्म को कोई हटा नहीं सकता, और उस के फ़ैसलों पर कोई ग़ालिब नहीं

(33)آمنا بذلك كله، وأيقنا أن كلا من عنده  
हम इन सब बातों पर ईमान रखते हैं और हमारा यक़ीने कामिल है कि सब कुछ उसी की तरफ़ से है

Bismillahirrahmanirrahim

पोस्ट : 4 : 
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हम इन सब बातों पर ईमान रखते हैं और हमारा यक़ीने कामिल है कि सब कुछ उसी की तरफ़ से है

               💫अब💫

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हज़रत मुहम्मद صلى الله عليه وسلم
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(34)وأن محمدا عبده المصطفى، ونبيه المجتبى، ورسوله المرتضى
बिलाशुबा हज़रत मुहम्मद صلى الله عليه وسلم अल्लाह के बरगुज़ीदा बंदे और उसके मुंतख़ब नबी और पसंदीदा रसूल हैं
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(35)خاتم الأنبياء،وإمام الأتقياء، وسيد المرسلين، وحبيب رب العالمين
और आप صلى الله عليه وسلم आख़िरी नबी मुत्तक़ियों और रसूलों के सरदार और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के महबूब हैं
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(36) وكل دعوى النبوة بعده فغَيٌّ وهوى
आप صلى الله عليه وسلم के बाद नबुव्वत का हर दावा गुमराही और ख़्वाहिश परस्ती है
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(37)وهو المبعوث إلى عامة الجن، وكافة الورى، بالحق والهدى
आप صلى الله عليه وسلم जिन्नों (और इन्सानों) और तमाम मख़लूक़ की तरफ़ हक़ की रोशनी और हिदायत के नूर के साथ भेजे गए
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Bismillahirrahmanirrahim

पोस्ट : 5 :

📚क़ुरआने मजीद:

(38)وإن القرآن كلام الله  منه بدا بلا كيفية قولا، وأنزله على رسوله وحيا،وصدقه المؤمنون على ذلك حقا،وأيقنوا أنه كلام الله تعالى بالحقيقة، ليس بمخلوق ككلام البريةفمن سمعه فزعم أنه كلام البشر فقد كفر، وقد ذمه الله وعابه، وأوعده بسقر، حيث قال (سأصليه سقر) فلما أوعد الله بسقر لمن قال (إن هذا إلا قول البش) علمنا وأيقنا أنه قول خالق البشر، ولا يشبه قول البشر
बिलाशुबा क़ुरआने मजीद अल्लाह का कलाम है उसकी ज़ात से बग़ैर किसी कैफ़ीयत के कि कलाम ज़ाहिर हुआ, और इस को अपने रसूल صلى الله عليه وسلم पर वही की सूरत में नाज़िल फ़रमाया, मोमिनीन ने हक़ समझते हुए उस की तसदीक़ की, और उन्होंने इस बात का यक़ीन किया कि हक़ीक़तन ये अल्लाह سبحانه وتعال का कलाम है,

मख़लूक़ के कलाम की तरह मख़लूक़ नहीं है।

जिसने उसे सुना और उसे मख़लूक़ का कलाम जाना उस ने कुफ़्र किया, अल्लाह سبحانه وتعال ने ऐसे इन्सान की मुज़म्मत बयान फ़रमाई और उसका ऐब बयान किया, और उसे जहन्नुम के अज़ाब से डराया, जैसा कि अल्लाह ने इरशाद
फ़रमाया, "
अनक़रीब उसे जहन्नुम में दाखिल करूँगा"
और चूँकि अल्लाह سبحانه وتعال ने जहन्नुम की वईद सुनाई है उस शख़्स को जो यूं कहे
"ये तो एक इन्सान का कलाम है"
इसलिए हमने इस हक़ीक़त को जान लिया,
और यक़ीन कर लिया कि ये कायनात के पैदा करने वाले "रब्बुल आलमीन" का कलाम है और ये इन्सान के कलाम जैसा नहीं।
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(39) ومن وصف الله بمعنى من معاني البشر فقد كفر،فمن أبصر هذا اعتبر، وعن مثل قول الكفار انزجر، وعلم أنه بصفاته ليس كالبشر
जिसने अल्लाह سبحانه وتعال का ज़िक्र इन्सानी सिफात में से किसी सिफ़त के साथ किया उस ने कुफ़्र किया,

और जिसने इस कलाम को बसीरत की निगाह से देखा उस ने नसीहत हासिल की,

और कुफ़्फ़ार के अक़्वालो अक़ाइद से बच गया, और इस हक़ीक़त को जान गया कि अल्लाह سبحانه وتعال अपनी सिफ़ात के साथ इन्सान की तरह नहीं है।
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(40)والرؤية حق لأهل الجنة بغير إحاطة ولا كيفية، كما نطق به كتاب ربنا: (وجوه يومئذ ناضرة إلى ربها ناظرة) وتفسيره على ما أراده الله تعالى وعَلِمَه، وكل ما جاء في ذلك من الحديث الصحيح عن الرسول صلى الله عليه وسلم فهو كما قال، ومعناه على ما أراد،لا ندخل في ذلك متأولين بآرائنا، ولا متوهمين بأهوائنا،فإنه ما سلم في دينه إلا من سلَّم لله عز وجل ولرسوله صلى الله عليه وسلم، ورَدَّ عِلْم ما اشتبه عليه إلى عالمه
अहले जन्नत को अपने परवरदिगार को देखना हक़ है,
लेकिन ये देखना बग़ैर किसी अहाता और कैफ़ीयत के होगा।

जैसा कि अल्लाह की किताब ने ज़िक्र किया कि "

उस रोज़ बहुत से चेहरे पुर रौनक होंगे, अपने रब की तरफ़  देख रहे होंगे"।

उस की तफ़सीर वही काबिले क़बूल होगी जो अल्लाह سبحانه وتعال की मंशाऐ और इल्म के मुताबिक़ होगी।

और इस ज़िमन में जितनी भी रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की सही अहादीस वारिद हैं वो सब मोतबर तसव्वुर होंगी।

मफ़हूम ये है कि हम उस की तफ़सीर करते हुए अपनी राय और ज़ाती ख़्वाहिश को फ़ौक़ियत नहीं देंगे।

हक़ीक़त ये है कि उसी इन्सान का दीन महफ़ूज़ रहता जो अपने आपको अल्लाह और उसके रसूल अलैहिस्सलाम के सुपुर्द कर दे और जिस मसले में इश्तिबाह पैदा हो जाये उस को उस के जानने वाले की तरफ़ छोड़ दे।
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(41) ولاتثبت قدم الإسلام إلا على ظهر التسليم والاستسلام، فمن رام عِلْمَ ما حُظِر عنه علمه، ولم يقنع بالتسليم فهمه، حجبه مرامه عن خالص التوحيد، وصافي المعرفة، وصحيح الإيمان، فيتذبذب بين الكفر والإيمان، والتصديق والتكذيب، والإقرار والإنكار، موسوسا تائها، زائغا شاكا، لا مؤمنا مصدقا، ولا جاحدا مكذبا
इस्लाम का क़दम तस्लीम और सपुर्द करने पर ही जम सकता है, लिहाज़ा जो शख़्स उस चीज़ के जानने के दरपे हो जिससे उसे रोका गया है और उस की समझ क़नाअत ना करे सुपुर्दगी और मानने पर तो वो महरूम हो जाएगा

ख़ालिस तौहीद, दीन की समझ और सही ईमान से।
बल्कि वो कुफ्रो ईमान, तस्दीक़ो तक़ज़ीब और इक़राओ इंकार के बीच शक में है।

इस की हालत हमेशा शक करने वाले और वस्वसों में मुब्तिला रहने वाले इन्सान की सी हो जाती है, जो ईमान का ना इक़रार कर रहा होता है ना इंकार।
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(42)ولا يصح الإيمان بالرؤية لأهل دار السلام لمن اعتبرها منهم بوهم، أو تأولها بفهم إذا كان تأويل الرؤية وتأويل كل معنى يضاف إلى الربوبية بترك التأويل ولزوم التسليم، وعليه دين المسلمين ومن لم يتوَقَّ النفي والتشبيه زل ولم يصب التنزيه فإن ربنا جل وعلا موصوف بصفات الوحدانية، منعوت بنعوت الفردانية، ليس في معناه أحد من البرية
जन्नत वालों का अल्लाह سبحانه وتعال को देखने के बारे में किसी शख़्स का इस तरह ईमान लाना जिसमें उसने अपने वहम का एतबार किया हो, या अपनी समझ से तावील की हो सही नहीं।

इसालिए कि रुईय्यत की तावील और इसी तरह हर उस सिफ़त की तावील जिसकी निसबत रबूबियत की तरफ़ हो दुरुस्त नहीं।

और ऐसी तावील को छोड़ दिया जायेगा, और तस्लीम को लाज़िम पकड़ लिया जाएगा, और अल्लाह سبحانه وتعال की जो मख़सूस सिफ़ात हैं उनको बिलकुल वैसा ही मान लेना मुसलमानों की शान है, और इसी पर मुसलमानों का एतिक़ाद है।
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💫बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम💫

             💫पोस्ट : 6:💫
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(43)تعالى اللہ عن الحدود
والغايات، والأركان والأعضاء والأدوات، لا تحويه الجهات الست كسائر المبتدعات
अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल हुदूद और क़ुयूद और जिस्मानी अरकान व आज़ा व आलात से पाक है और ना ही आम अशिया की तरह जिहाते सित्ता इस पर हावी हैं।
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(44)والمعراج حق، وقد أسرى بالنبي صلى الله عليه وسلم، وعرج بشخصه في اليقظة إلى السماء، ثم إلى حيث شاء الله من العلا وأكرمه الله بما شاء، وأوحى إليه ما أوحى (ما كذب الفؤاد ما رأى) فصلى الله عليه وسلم في الآخرة والأولى
मेराज बरहक़ है।
अल्लाह سبحانه وتعال ने नबी अकरम صلى الله عليه وسلم को रात के वक़्त सैर कराई और बेदारी की हालत में अल्लाह ने आसमान की तरफ़ आपके जिस्मे अतहर को उठाया फिर बुलंदीयों पर अल्लाह سبحانه وتعال ने जहां तक चाहा ले जाया गया और अपनी चाहत के मुताबिक़ आपको इज़्ज़त बख़्शी। दुनिया और आख़िरत में आप صلى الله عليه وسلم पर दुरूदो सलाम हो।
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(45)والحوض الذي أكرمه الله تعالى به غياثا لأمته حق
हौज़े कौसर बर हक़ है। जिसके ज़रीये अल्लाह ने आप صلى الله عليه وسلم को इज़्ज़त बख़्शी और इसे उम्मत की प्यास बुझाने का ज़रीया बनाया।
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(46)والشفاعة التي ادخرها لهم حق، كما روي في الأخبار
उम्मत के लिए रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की सिफ़ारिश भी बरहक़ है। जैसाकि मुतअद्दिद अहादीस में इस का ज़िक्र मिलता है।
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(47)والميثاق الذي أخذه الله تعالى من آدم وذريته حق
आदम अलैहिस्स्लाम और औलादे आदम से अल्लाह ने जो मीसाक़ (इक़रार) लिया वो भी बरहक़ है।
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(48)وقد علم الله تعالى فيما لم يزل عدد من يدخل الجنة، وعدد من يدخل النار جملة واحدة، فلا يزاد في ذلك العدد ولا ينقص منه
अल्लाह سبحانه وتعال को अज़ल से उन लोगों का मुकम्मल इल्म है जो जन्नत में जाऐंगे और जो जहन्नुम जाऐंगे, इस में किसी का इज़ाफ़ा होगा ना कमी।
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(49)وكذلك أفعالهم فيما علم منهم أن يفعلوه، وكلٌّ ميسر لما خلق له
इसी तरह लोगों के वो आमाल भी अल्लाह سبحانه وتعال के इल्म में है जो उनको मुस्तक़बिल में सरअंजाम देने हैं।

हर आदमी के लिए वही काम आसान किया जाता है, जिसके लिए वो पैदा किया गया है।
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(50)والأعمال بالخواتيم، والسعيد من سعد بقضاء الله، والشقي من شقي بقضاء الله
आमाल का दारो मदार ख़ात्मे पर है। सआदतमंद वो है जिसके लिए तक़दीर में सआदत लिख दी गई, बदबख़्त (बदनसीब) वो है जिसकी तक़दीर में बदबख़्ती लिख दी गई हो।
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  (51)وأصل القدر سر الله تعالى في خلقه، لم يطلع على ذلك ملك مقرب ولا نبي مرسل، والتعمق والنظر في ذلك ذريعة الخذلان، وسلم الحرمان، ودرجة الطغيان، فالحذر كل الحذر من ذلك نظرا وفكرا ووسوسة،
तक़दीर की हक़ीक़त ये है कि ये मख़लूक़ में अल्लाह سبحانه وتعال का एक राज़ है, इस से ना तो मुक़र्रब फ़रिश्ता आगाह है ना ही कोई नबी मुर्सल, तक़दीर में ग़ौरो फ़िक्र नामुरादी, महरूमी और सरकशी का ज़रीया बनता है, मस॔ला तक़दीर में ग़ौर करने से नज़र, फ़िक्र सोसा हर एतबार से बचना चाहे।
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(52) فإن الله تعالى طوى علم القدر عن أنامه، ونهاهم عن مرامه، كما قال الله تعالى في كتابه: (لا يسأل عما يفعل وهم يسألون) فمن سأل: لِمَ فعل ؟ فقد رد حكم الكتاب، ومن رد حكم الكتاب كان من الكافرين
इसलिए कि अल्लाह ने तक़दीर का इल्म अपनी मख़लूक़ से समेट लिया और इस में ग़ौरो फिक्र करने से रोक दिया।

जैसा कि अल्लाह سبحانه وتعال ने इरशाद फ़रमाया :
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لَا يُسۡـَٔلُ عَمَّا يَفۡعَلُ وَهُمۡ يُسۡـَٔلُونَ
वो जो काम करता है उस से पूछा नहीं जाएगा और (जो काम ये लोग करते हैं) उस के बारे में उनसे पूछ होगी (सूरह अंबिया -23)
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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

                 💫   पोस्ट : 7 :  💫

👉🏿तक़दीर 👈🏿
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जिसने ये ऐतराज़न पूछा कि ख़ुदा ने ये काम क्यों किया।

उसने क़ुरआने मजीद के हुक्म को ठुकरा दिया और जिसने क़ुरआने मजीद के हुक्म को ठुकरा दिया वो ज़मुराऐ कुफ़्फ़ार में शामिल हो गया।
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  (53)فهذا جملة ما يحتاج إليه من هو منور قلبه من أولياء الله تعالى، وهي درجة الراسخين في العلم
منذّلُ مِنَ اللہ शरीयत को ऐतक़ादन और अमलन उन औलिया अल्लाह ने तस्लीम किया जिनके दिल मुनव्वर थे और ये मुक़ाम रासख़ीन फिल इल्म को नसीब होता  
है।
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((54 لأن العلم علمان: علم في الخلق موجود، وعلم في الخلق مفقود، فإنكار العلم الموجود كفر، وادعاء العلم المفقود كفر، ولا يثبت الإيمان إلا بقبول العلم الموجود وترك طلب العلم المفقود
इल्म दो तरह का है।
एक इल्म मख़लूक़ में मौजूद है और दूसरा इल्म मख़लूक़ में नापैद है।

मौजूद इल्म का इंकार और मफ़क़ूद इल्म का दावा कुफ़्र है।

इल्मे मौजूद के क़बूल करने और इल्मे मफ़क़ूद के तर्क करने से ईमान में मज़बूती होती है।
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(55)  ونؤمن باللوح والقلم، وبجميع ما فيه قد رقم، فلو اجتمع الخلق كلهم على شيء كتبه الله تعالى فيه أنه كائن ليجعلوه غير كائن لم يقدروا عليه، ولو اجتمعوا كلهم على شيء لم يكتبه الله تعالى فيه ليجعلوه كائنا لم يقدروا عليه
हम लौह व क़लम और उन तमाम चीज़ों पर ईमान रखते हैं जो तक़दीर में लिख दी गई हैं जिस काम का होना अल्लाह ने मुक़द्दर कर दिया है वो बहर-सूरत हो कर रहेगा
अगर तमाम मख़लूक़ मिलकर उस को रोकने की कोशिश करे वो इस में नाकाम रहेगी।

अगर अल्लाह ने किसी काम के ना करने का फ़ैसला कर लिया है,
वो बिल्कुल नहीं होगा।

अगर तमाम मख़लूक़ उसे सरअंजाम देना चाहे तो नाकाम रहेगी।
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  (56)جف القلم بما هو كائن إلى يوم القيامة، وما أخطأ العبد لم يكن ليصيبه، وما أصابه لم يكن ليخطئه
क़ियामत तक जो कुछ होने वाला है लिख दिया गया है और तक़दीर का फ़ैसला मिट नहीं सकता।

बंदे से टलने वाली चीज़ उसे पेश नहीं आ सकती, और जो पेश आने वाली चीज़ है वो टलेगी नहीं।
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(57) وعلى العبد أن يعلم أن الله قد سبق علمه في كل كائن من خلقه،فقدر ذلك تقديرا محكما مبرما، ليس فيه ناقض ولا معقب، ولا مزيل ولا مغير، ولا ناقص ولا زائد من خلقه في سماواته وأرضه
बंदे के लिए ये लाज़िम है कि वो इस हक़ीक़त को अच्छी तरह जान लें कि जो कुछ कायनात में हो रहा है वो पहले से अल्लाह سبحانه وتعال के इल्म में है।

इस के मुताल्लिक़ मज़बूत मुस्तहकम और ना बदलने वाला फ़ैसला कर रखा है इस फ़ैसले को आसमान और ज़मीन की मख़लूक़ात में से ना कोई तोड़ सकता है और ना ही कोई रद्द कर सकता है और ना ही कोई उस के फ़ैसलों को ख़त्म कर सकता है और ना ही उनको बदल सकता है।

ना उनमें कमी कर सकता है और ना ही कोई उनमें इज़ाफे़ की ताक़त रखता है।
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(58)  وذلك م
ن عقد الإيمان وأصول المعرفة، والاعتراف بتوحيد الله تعالى وربوبيته، كما قال تعالى في كتابه: (وخلق كل شيء فقدره تقديرا) ، وقال تعالى: (وكان أمر الله قدرا مقدورا) فويل لمن صار لله تعالى في القدر خصيما، وأحضر للنظر فيه قلبا سقيما، لقد التمس بوهمه في محض الغيب سرا كتيما، وعاد بما قال فيه أفاكا أثيما
इन हक़ायक़ को तस्लीम करना ईमान की पुख़्तगी मार्फ़त की बुनियाद, तौहीदे बारी तआला और उस की रबूबियत का एतराफ़ है।

जैसा कि अल्लाह ने अपनी किताब में इरशाद फ़रमाया ।
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وَخَلَقَ ڪُلَّ شَىۡءٍ۬ فَقَدَّرَهُ ۥ تَقۡدِيرً۬ا
और उसने हर चीज़ को पैदा किया फिर उस का एक अंदाज़ा ठहराया।

(फुरक़ान-2)

وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ قَدَرً۬ا مَّقۡدُورًا
और ख़ुदा का हुक्म मुक़द्दर हो चुका था।
(अल अहज़ाब-38)
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लिहाज़ा हलाकत है इस इन्सान के लिए जो तक़दीर पर इलाही के मसाइल में अल्लाह से झगडालू बना और बीमार दिल के साथ तक़दीर के मसाइल में ग़ौर-ओ-ख़ौज़ करने लगा। वो अपने वहम-ओ-गुमान के मुताबिक़ ग़ैब के अंदर में छपे हुए राज़ हाय ख़ुदावंदी को तलाश करने लगा और इस तरह वो तक़दीर के मसाइल को बयान करने में झूटा और गुनहगार ठहरा।

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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
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              ➖पोस्ट : 8 :➖

इमान ?
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(59)والعرش والكرسي حق  

अर्शे इलाही और कुर्सी बरहक़ है।
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(60) وهو مستغن عن العرش وما دونه

हक़ तआला अर्श गेरा से बेनयाज़ है।
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(61)محيط بكل شيء وفوقه،۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔

अल्लाह سبحانه وتعال हर चीज़ को घेरे हुए है और सब पर ग़लबा और बरतरी रखता है और उसने मख़लूक़ को अपने अहाते से आजिज़ कर दिया।
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(62)ونقول إن الله اتخذ إبراهيم خليلا، وكلم الله موسى تكليما، إيمانا
وتصديقا وتسليما

पूरे ईमान, सिद्क़ दिल और तस्लीम-ओ-रज़ा से हम इस बात का एतराफ़ करते हैं कि अल्लाह سبحانه وتعال ने इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपना ख़लील बनाया मूसा अलैहिस्सलाम से बातें की।
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(63) ونؤمن بالملائكة والنبيين والكتب المنزلة على المرسلين، ونشهد أنهم كانوا على الحق المبين

हम फ़रिश्तों, अंबिया अलैहिस्सलाम और रसूलों पर नाज़िल की गई तमाम किताबों पर ईमान रखते हैं और इस बात की गवाही देते हैं कि तमाम अंबिया अलैहिस्सलाम खुले हक़ पर थे।
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(64)ونسمي أهل قبلتنا مسلمين مؤمنين، ما داموا بما جاء به النبي صلى الله عليه وسلم معترفين، وله بكل ما قاله وأخبر مصدقين

हम अहले क़िब्ला को इस सूरत में मुसलमान और मोमिन समझते हैं जब तक वो उस दीन पर क़ायम रहें जो रसूले अकरम صلى الله عليه وسلم कर आए और आपकी तमाम बातों और अहादीस को सच्चे दिल से तस्लीम करते रहें।
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(65) ولا نخوض في الله، ولا نماري في دين الله

हमज़ाते ख़ुदा में सोच बिचार नहीं करते और ना ही अल्लाह के दीन में झगड़ालू का किरदार अदा करते हैं।
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(66) ولا نجادل في القرآن ونشهد أنه كلام رب العالمين، نزل به الروح الأمين، فعلمه سيد المرسلين، محمدا صلى الله عليه وسلم، وهو كلام الله تعالى لا يساويه شيء من كلام المخلوقين، ولا نقول بخلقه، ولا نخالف جماعة المسلمين

हम क़ुरआन के ज़ाहिरी मआनी में झगड़ा नहीं करते बल्कि इस बात की गवाही देते हैं कि ये सारे आलम के परवरदिगार का कलाम है।

जिब्रईल अलैहिस्सलाम इसे लेकर नाज़िल हुए और सारे नबियों के सरदार صلى الله عليه وسلم को ये कलाम सिखलाया, बिलाशुबा ये कलाम इलाही है।

मख़लूक़ का कोई कलाम उस के मुसावी नहीं हो सकता और ना ही हम अल्लाह के कलाम को मख़लूक़ कहते हैं।

हम किसी भी मसले में मुसलमानों की जमात की मुख़ालिफ़त नहीं करते।
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(67)و لا نكفر أحدا من أهل القبلة بذنب الا اذا استحله

जब तक मुसलमान किसी गुनाह को अक़ीदे के एतबार से जायज़ नहीं समझते, हम उन्हें काफ़िर क़रार नहीं देते।
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(68) ولا نقول: لا يضر مع الإيمان ذنب لمن عمله

और ना ही हमारा ये अक़ीदा है कि गुनाह मोमिन को कोई नुक़्सान नहीं देता।
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(69) ونرجو للمحسنين من المؤمنين أن يعفو عنهم، ويدخلهم الجنة برحمته، ولا نأمن عليهم، ولا نشهد لهم بالجنة، ونستغفر لمسيئهم، ونخاف عليهم ولا نقنِّطهم

हम मोमिनीन में से नेक लोगों के बारे में उम्मीद रखते हैं कि अल्लाह سبحانه وتعال उनको माफ़ फ़रमा देगा और उन्हें अपनी रहमत से जन्नत में दाख़िल फ़रमाएगा।

लेकिन जन्नत में यक़ीनी दाख़िले की हम गवाही नहीं देते।

हम गुनहगारों के लिए बख़्शिश की दुआ करते हैं।

हमें उनके मुताल्लिक़ डर है लेकिन हम उन्हें मायूस नहीं करते।
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(70) والأمن والإياس ينقلان عن ملة الإسلام، وسبيل الحق بينهما
لأهل القبلة

बे-ख़ौफ़ी और मायूसी का इस्लाम से कोई ताल्लुक़ नहीं।

मुसलमानों के लिए सीधा रास्ता दोनों के बीच है।
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(71)ولا يخرج العبد من الإيمان إلا بجحود ما أدخله فيه

बंदाऐ मोमिन ईमान के दायरे से उस वक़्त तक निकल नहीं सकता जब तक के उन बातों का इंकार ना कर दे जिनके बिना पर ईमान में दाख़िल हुआ था।
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(72)  والإيمان: هو الإقرار باللسان، والتصديق بالجنان

ईमान ज़बान से कहने और दिल से सच्चा मानने का नाम है।
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Bismillahirrahmanirrahim
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💫💫पोस्ट : 9 : 💫💫
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ईमान ज़बान से कहने और दिल से सच्चा मानने का नाम है।
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(73)  وجميع ما صح عن رسول الله صلى الله عليه وسلم من الشرع والبيان
كله حق
शरीयत में पाए जाने वाले रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के तमाम अहकामात बरहक़ हैं।
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(74) والإيمان واحد، وأهله في أصله سواء، والتفاضل بينهم بالخشية والتقى، ومخالفة الهوى، وملازمة الأولى

ईमान वाहिद है और तमाम मोमिनीन ईमान में बराबर हैं लेकिन एक दूसरे पर बरतरी ख़ौफे ख़ुदा, अपनी ख़ाहिशात पर ना चलने ख़्वाहिशाते नफ्सानी की मुख़ालिफ़त और अफ़ज़ल हुक्म पर पाबंदी की बुनियाद पर नसीब होती है।
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((75والمؤمنون كلهم أولياء الرحمن، وأكرمهم عند الله أطوعهم
وأتبعهم للقرآن

तमाम ईमान वाले अल्लाह سبحانه وتعال के वली हैं। उनमें सबसे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जो अल्लाह और रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم का ज़्यादा फ़रमा बर्दार और क़ुरआने मजीद का ताबे हो।
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(76) والإيمان: هو الإيمان بالله، وملائكته، وكتبه، ورسله، واليوم الآخر، والقدر خيره وشره، وحلوه ومره  من الله تعالى

ईमान नाम है सच्चे दिल से यक़ीन करने का अल्लाह سبحانه وتعال पर उस के फ़रिश्तों पर उस की आसमानी किताबों पर और उसके रसूलों पर और आख़िरत के दिन पर और अच्छी बुरी और मुवाफ़िक़ और मुख़ालिफ़त तक़दीर के होने पर।
77)) ونحن مؤمنون بذلك كله، لا نفرق بين أحد من رسله، ونصدقهم كلهم على ما جاؤوا به
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हम इन तमाम बातों पर ईमान रखते हैं हम रसूलों में से किसी में तफ़रीक़ नहीं करते और वो जो पैग़ाम लाए थे उस की तसदीक़ करते हैं।

(78) وأهل الكبائر من أمة محمد صلى الله عليه وسلم في النارلا يخلدون، إذا ماتوا وهم موحدون، وإن لم يكونوا تائبين، بعد أن لقوا الله عارفين مؤمنين وهم في مشيئته وحكمه: إن شاء غفر لهم وعفا عنهم بفضله، كما ذكر عز وجل في كتابه: (ويغفر ما دون ذلك لمن يشاء) وإن شاء عذبهم في النار بعدله، ثم يخرجهم منها برحمته، وذلك بأن الله تعالى تولى أهل معرفته، ولم يجعلهم في الدارين كأهل نكرته؛ الذين خابوا من هدايته، ولم ينالوا من ولايته، اللهم يا ولي الإسلام وأهله ثبتنا على الإسلام حتى نلقاك به
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हज़रत मुहम्मद صلى الله عليه وسلم की उम्मत में से कबीरा गुनाह के इर्तिकाब करने वाले जहन्नुम में जाऐंगे।

लेकिन वो इस में हमेशा नहीं रहेंगे, बशर्तिके मौत के वक़्त तौहीद के क़ाइल हों अगरचे कबीरा गुनाहों से तौबा ना की हो लेकिन अल्लाह से जब मिले हों तो आरिफ़ और मोमिन होने की हालत में मिले हों ऐसे लोग अल्लाह की मशियत और हुक्म के तहत होंगे, अगर वो चाहे तो उनको बख़्श दे और उन्हें अपने फज़लो करम से माफ़ कर दे जैसा कि अल्लाह سبحانه وتعال ने अपनी किताब में तज़किरा फ़रमाया: "(शिर्क) के सिवा और गुनाह जिसको चाहे माफ़ कर दे" और अगर वो चाहे तो उन्हें जहन्नुम में अपने अदलो इंसाफ के मुताबिक़ सज़ा दे, फिर उन्हें इस से अपनी रहमत और अपने फ़रमांबर्दार बंदों की सिफ़ारिश की बिना पर निकाल दे और उन्हें जन्नत में दाख़िल कर दे।

ये इसलिए होगा कि अल्लाह ने अहले ईमान को दोस्त बनाया है।
और उन्हें दुनिया और आख़िरत में मुन्किरीन के बराबर क़रार नहीं दिया जो हिदायत इलाही से महरूम रहे और उस की दोस्ती को ना पा सके।
ऐ अल्लाह!
ऐ इस्लाम और अहले इस्लाम के दोस्त!

हमें इस्लाम पर साबित-क़दम रख यहाँ तक कि तुझसे उसी हालत में आ मिलें।
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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
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         पोस्ट : 10 :
हमारा अक़ीदा  :   हमारा ईमान  :
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79)) ونرى الصلاة خلف كل بر وفاجر من أهل القبلة، ونصلي على
من مات منهم
हम अहले क़िब्ला (यानी मुसलमानों) में से हर नेक और गुनाहगार इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ने को दुरुस्त समझते हैं और इसी तरह हर नेक और गुनाहगार की नमाज़ जनाज़ा पढ़ना शरअन जायज़ समझते हैं।
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(80) ولا ننزل أحدا منهم جنة ولا نارا، ولا نشهد عليهم بكفر ولا بشرك ولا بنفاق، ما لم يظهر منهم شيء من ذلك، ونذر سرائرهم إلى الله تعالى
हम किसी फ़र्द को जन्नती या जहन्नुमी क़रार नहीं देते और ना ही किसी पर कुफ्र, शिर्क या निफ़ाक़ का फ़तवा लगाते हैं जब तक कि उन चीज़ों का इस से ज़हूर ना हो जाये। हम उनकी पोशीदा बातों (छिपी हुई) को अल्लाह के सपुर्द करते हैं।
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(81) ولا نرى السيف على أحد من أمة محمد صلى الله عليه وسلم إلا من وجب عليه السيف
हम उम्मते मुहम्मदिया में से किसी फ़र्द पर तलवार चलाना जायज़ नहीं समझते। मगर जिस पर तलवार का चलना वाजिब हो जाये।
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(82) ولا نرى الخروج على أئمتنا وولاة أمورنا وإن جاروا، ولا ندعوا عليهم ولا ننزع يدا من طاعتهم ونرى طاعتهم من طاعة الله عز وجل فريضة، ما لم يأمروا بمعصية، وندعوا لهم بالصلاح والمعافاة
हम मुसलमान हुक्मरानों के ख़िलाफ़ बग़ावत को जायज़ नहीं समझते अगरचे वो ज़ालिम ही क्यों ना हों और ना ही हम उन्हें बददुआ देते हैं और ना ही उनकी इताअत से अपना हाथ खींचते हैं जब तक वो किसी गुनाह का हुक्म ना दें। हम उनकी इताअत को अल्लाह की इताअत और फ़र्ज़ समझते हैं। और हम उनके लिए बेहतरी और आफ़ियत की दुआ करते हैं।
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(83)  ونتبع السنة والجماعة، ونجتنب الشذوذ والخلاف والفرقة
हम सुन्नत और जमात की पैरवी करते हैं और मुसलमानों की जमात से अलैहदगी, मुख़ालिफ़त और इफ़्तिराक़ से अपने आपको बचाते हैं।
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(84)  ونحب أهل العدل والأمانة، ونبغض أهل الجور والخيانة
हम अहले अद्ल और अमानत से मुहब्बत करते हैं। ज़ालिमों और ख़ियानत का इर्तिकाब करने वालों से नफ़रत करते हैं।
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(85)  ونقول: الله أعلم فيما اشتبه علينا علمه
अगर किसी चीज़ के बारे में हमें शक-ओ-शुबा हो जाये तो हम इस मुक़ाम पर अल्लाहु आलम (अल्लाह बेहतर जानता है) कहते हैं।
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(86)  ونرى المسح على الخفين في السفر والحضر، كما جاء في الأثر
इस्लामी तालीमात के मुताबिक़ सफ़र-ओ-हज़र में हम मौज़ों पर मसह जायज़ समझते हैं।
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(87)  والحج والجهاد ماضيان مع أولي الأمر من المسلمين، برهم وفاجرهم إلى قيام الساعة، لا يبطلهما شيء ولا ينقضهما
मुसलमानों में नेक व बद हुक्मरानों के साथ हज और जिहाद क़ियामत तक जारी रहेंगे उनको कोई चीज़ ना तो ख़त्म कर सकती है और ना तोड़ सकती है।
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(88)  ونؤمن بالكرام الكاتبين، فإن الله قد جعلهم علينا حافظين
हम किरामन कातबीन पर भी ईमान रखते हैं कि बेशक उनको अल्लाह ने हमारा मुहाफ़िज़ बनाया है।
(89)  ونؤمن بملك الموت الموكل بقبض أرواح العالمين
हम मलकुल मौत पर भी ईमान रखते जिसे अल्लाह ने रूहें क़ब्ज़ करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है।
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(90)  وبعذاب القبر لمن كان له أهلا، وسؤال منكر ونكير في قبره عن ربه ودينه ونبيه، على ما جاءت به الأخبار عن رسول الله صلى الله عليه وسلم، وعن الصحابة رضوان الله عليهم
हम अज़ाबे क़ब्र पर भी यक़ीन रखते हैं यानी उस शख़्स को अज़ाब होगा जो इसका मुस्तहिक़ हो जिस तरह कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم और सहाबा किराम से साबित है। हम क़ब्र में मुनकिर और नकीर के सवालात को भी बरहक़ मानते हैं जो अल्लाह سبحانه وتعال, दीन और रसूले अकरम صلى الله عليه وسلم के मुताल्लिक़ करेंगे।
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(91)  والقبر روضة من رياض الجنة، أو حفرة من حفر النيران
क़ब्र जन्नत के गुलिस्तानों में से एक गुलिस्तान है या जहन्नुम के गढ़ों में से एक गढ़ा है।

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Bismillahirrahmanirrahim
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         पोस्ट :11 :

👉🏿हमारा आकिदा
👉🏿हमारा ईमान
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(92)  ونؤمن بالبعث وجزاء الأعمال يوم القيامة، والعرض والحساب، وقراءة الكتاب، والثواب والعقاب، والصراط والميزان
हम मौत के बाद दुबारा उठाए जाने, क़ियामत के रोज़ आमाल की जज़ा, हिसाब और किताब, आमाल नामे की क़राअत, सवाब और उक़ाब, पुल सिरात और मीज़ान जैसे हक़ायक़ पर ईमान हैं।
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(93)  والجنة والنار مخلوقتان، لا تفنيان أبدا ولا تبيدان وإن الله تعالى خلق الجنة والنار قبل الخلق، وخلق لهما أهلا، فمن شاء منهم إلى الجنة فضلا منه، ومن شاء منهم إلى النار عدلا منه، وكل يعمل لما قد فرغ له، وصائر إلى ما خلق له
जन्नत और दोज़ख़ अल्लाह की मख़लूक़ हैं जो कभी फ़ना नहीं होंगी।

अल्लाह ने जन्नत और दोज़ख़ को दूसरी मख़लूक़ को पैदा करने से पहले बनाया और इन दोनों के लिए अहल भी पैदा किया।

उनमें से जिसे चाहेगा अपने फज़लो करम से जन्नत में दाख़िल कर देगा और जिसे चाहेगा अपने अदलो इंसाफ के साथ जहन्नुम रसीद कर देगा।

हर इन्सान वही काम सरअंजाम देता है जिसके लिए वो फ़ारिग़ होगा और हर शख़्स उसी तरफ़ लौटने वाला है जिसके लिए उसे पैदा किया गया।
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(94)  والخير والشر مقدران على العباد
ख़ैर और शर का बंदों के लिए फ़ैसला कर दिया गया।
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(95)   والاستطاعة التي يجب بها الفعل من نحو التوفيق الذي لا يجوز أن يوصف المخلوق به، فهي مع الفعل، وأما الاستطاعة من جهة الصحة والوسع والتمكن وسلامة الآلات فهي قبل الفعل، وبها يتعلق الخطاب، وهو كما قال الله تعالى: (لا يكلف الله نفسا إلا وسعها)

वो इस्तिताअत जिससे अमल वाजिब हो जाता है जैसे तौफ़ीक़ है जिससे कोई मख़लूक़ मुत्तसिफ़ नहीं हो सकती वो अमल के साथ साथ है।

और वो इस्तिताअत जो सेहत, वुसअत, क़ुदरत और मुवाफ़िक़ अस्बाब की सूरत में मुहय्या होती है इसका वजूद अमल से पहले होता है।

ख़िताब इसी इस्तिताअत से मुताल्लिक़ होता है।

अल्लाह سبحانه وتعال का इरशाद है :"अल्लाह किसी शख़्स को उसकी ताक़त से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देता"
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(96)  وأفعال العباد خلق الله، وكسب من العباد
बंदगाने ख़ुदा के अफ़आल अल्लाह की मख़लूक़ और बंदों का कसब हैं।
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(97) ولم يكلفهم الله تعالى إلا ما يطيقون ولايطيقون إلا ما كلفهم، وهو تفسير لا حول ولا قوة إلا بالله، نقول: لا حيلة لأحد، ولا حركة لأحد، ولا تحول لأحد عن معصية الله إلا بمعونة الله، ولا قوة لأحد على إقامة طاعة الله والثبات عليها إلا بتوفيق الله
अल्लाह سبحانه وتعالने अपने बंदों को उन्हीं कामों का हुक्म दिया है जिनकी वो ताक़त रखते हैं।

वो सिर्फ इसी बात की ताक़त रखते हैं जिसका उनको हुक्म दिया है "लाहौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहि "का मफ़हूम भी यही है।

हम ये इक़रार करते हैं कि अल्लाह के सिवा इस कायनात में किसी का कोई बस नहीं चलता। ना कोई चीज़ उस के हुक्म के बग़ैर हरकत कर सकती है।

अल्लाह की मदद के बग़ैर ना कोई उस की नाफ़रमानी से बच सकता है और ना ही उस की तौफ़ीक़ के बग़ैर अल्लाह के हुक्मों पर चल सकता है।
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Bismillahirrahmanirrahim
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*साहबा की अज़मत को   *
*ये बात काफी वोह राजी  *
*खुदा से खुदा उनसे राजी *
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हमारा अक़ीदा:
हमारा ईमान :

पोस्ट : 12 :
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(98) وكل شيء يجري بمشيئة الله تعالى وعلمه وقضائه وقدره، غلبت مشيئة المشيئات كلها، وغلب قضاؤه الحيل كلها، يفعل ما يشاء وهو غير ظالم أبدا تقدس عن كل سوء وحين، وتنزه عن كل عيب وشين، يسأل عما يفعل وهم يسألون
कायनात की हर चीज़ अल्लाह سبحانه وتعال की मंशा, उस के इल्म और क़ज़ा व क़ुदरत से जारी और सारी है।

इस की मशीयत तमाम मशीयतों पर ग़ालिब है और उसका फ़ैसला तमाम फैसलों पर ग़ालिब है।

जो वो चाहता है करता है।

वो ज़ात किसी पर ज़ुल्म नहीं करती वो हर किस्म की बुराई और हलाकत से पाक और हर किस्म के ऐब और नागवार चीज़ से पाक है।

"वो जो काम करता है उसकी पुर्सिश (पुछताछ) नहीं होगी और (जो ये लोग करते हैं) उनकी पुर्सिश होगी"

(अल अंबिया-23)
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99))  وفي دعاء الأحياء وصدقاتهم منفعة للأموات
ज़िंदों का दुआ करना और सदक़ा और ख़ैरात करना मर्दों के लिए नफ़ा बख्श है।

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(100)  والله تعالى يستجيب الدعوات ويقضي الحاجات
अल्लाह दुआओं को क़बूल और हाजात को पूरा करता है।
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(101)  ويملك كل شيء ولا يملكه شيء، ولا غنى عن الله تعالى طرفة عين، ومن استغنى عن الله طرفة عين فقد كفر، وصار من أهل الحين
अल्लाह سبحانه وتعال हर चीज़ का मालिक है इस का कोई मालिक नहीं।

अल्लाह سبحانه وتعال से एक लहज़ा भी कोई बेनियाज़ नहीं हो सकता, और जो शख़्स लहज़ा भर भी अल्लाह से बेनियाज़ हो गया तो उसने कुफ़्र का इर्तिकाब किया और वो हलाकत ज़दा लोगों में शुमार हो गया।
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(102)  والله يغضب ويرضى لا كأحد من الورى
अल्लाह سبحانه وتعالनाराज़ भी होता है और ख़ुश भी लेकिन उसकी नाराज़ी और ख़ुशी मख़लूक़ जैसी नहीं होती।
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(103)  ونحب أصحاب رسول الله صلى الله عليه وسلم، ولا نفرط في حب أحد منهم، ولا نتبرأ من أحد منهم، ونبغض من يبغضهم، وبغير الخير يذكرهم، ولا نذكرهم إلا بخير، وحبهم دين وإيمان وإحسان، وبغضهم كفر ونفاق وطغيان
हम अस्हाबे रसूल अलैहिस्सलाम से मुहब्बत करते हैं और हम उनमें से किसी की मुहब्बत में उसके हक़ से ज़्यादा नहीं बढ़ते।

और ना ही उनमें से किसी से बराअत का इज़हार करते हैं।

हम उस से बुग़्ज़ रखते हैं, जो सहाबा किराम رضی اللہ عنھم से बुग़्ज़ रखता है।

हम उससे भी बुग़्ज़ रखते जो उनका अच्छे अंदाज़ में नाम नहीं लेता।

हम सहाबा किराम का तज़किरा इंतिहाई मुहब्बत भरे अंदाज़ से करते हैं।

सहाबा किराम की मुहब्बत दीन, ईमान और एहसान की अलामत है और उनसे बुग़्ज़ कुफ़्र, निफ़ाक़ और सरकशी है।
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(104)  ونثبت الخلافة بعد رسول الله صلى الله عليه وسلم أولا لأبي بكر الصديق رضي الله عنه تفضيلا له وتقديما على جميع الأمة، ثم لعمر بن الخطاب رضي الله عنه، ثم لعثمان رضي الله عنه، ثم لعلي بن أبي طالب رضي الله عنه، وهم الخلفاء الراشدون والأئمة المهتدون
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ رضي الله عنهको हम रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم का पहला ख़लीफ़ा मानते हैं।
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इसलिए कि वो उम्मत में अफ़ज़ल तरीन हस्ती थे।
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उनके बाद दर्जा बदरजा हज़रत उमर बिन ख़त्ताब رضي الله عنه को
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दूसरा, हज़रत उस्मान رضي الله عنه को
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तीसरा और हज़रत अली इब्ने अबी तालिब رضي الله عنه को
चौथा ख़लीफ़ा तस्लीम करते हैं।

ये ख़ुलफ़ाए राशिदीन हैं और हिदायत याफ्ता उम्मत के इमाम हैं👍
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(105)  وأن العشرة الذين سماهم رسول الله صلى الله عليه وسلم وبشرهم بالجنة نشهد لهم بالجنة، على ما شهد لهم رسول الله صلى الله عليه وسلم، وقوله الحق، وهم: أبو بكر، وعمر، وعثمان، وعلي، وطلحة، والزبير، وسعد، وسعيد، وعبد الرحمن بن عوف، وأبو عبيدة بن الجراح؛ وهو أمين هذه الأمة رضي الله عنهم أجمعين
वो दस सहाबा किराम رضی اللہ عنھمजिनका रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने नाम लिया और उन्हें जन्नत की ख़ुशख़बरी दी।
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हम उनके जन्नती होने की गवाही इस बिना पर देते हैं कि हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने इस की गवाही दी आपका फ़रमान बरहक़ है।
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और वो दस सहाबा رضی اللہ عنھم ये हैं।

(1) हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़

(2) हज़रत उमर फ़ारूक़

(3) हज़रत उस्मान ग़नी

(4) हज़रत अली इब्ने अबी तालिब

(5) हज़रत तलहा

(6) हज़रत ज़ुबैर

(7) हज़रत साद

(8) हज़रत सईद

(9) हज़रत अब्दुर्रहमान इब्ने औफ़

(10) हज़रत अबु उबैदा बिन जर्राह رضی اللہ عنھم .इनको इस उम्मत के अमीन होने का लक़ब भी दिया गया।

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🌹सुभान अल्लाह 🌹

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
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  🌹अकिदातुत ताहावीय्या 🌹

        🏴आखरी पोस्ट : 🏴

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(106)  ومن أحسن القول في أصحاب رسول الله صلى الله عليه وسلم وأزواجه الطاهرات من كل دنس وذرياته المقدسين من كل رجس؛ فقد برئ
من النفاق

जिसने सहाबा किराम رضی اللہ عنھم, अज़वाजे मुताहिरात رضی اللہ عنھما  और आपकी पाकीज़ा औलाद के मुताल्लिक़ अच्छा तज़किरा किया उसने अपने आपको निफ़ाक़ से बरी कर लिया।

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(107)  وعلماء السلف من السابقين، ومن بعدهم من التابعين أهل الخير والأثر، وأهل الفقه والنظر، لا يذكرون إلا بالجميل، ومن ذكرهم بسوء فهو على غير السبيل

पिछले औलमाऐ सल्फ और बाद में आने वाले उनके पैरोकार जो बिलाशुबा ख़ैर और भलाई के ख़ूगर और फ़िक़्ह ओ नज़र के हामिल थे उनका तज़किरा भी अच्छाई के साथ ही होना चाहीए, जिसने उन्हें बुरे अंदाज़ में याद किया वो यक़ीनन राहे रास्त पर नहीं है।

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(108)  ولا نفضل أحدا من الأولياء على أحد من الأنبياء عليهم السلام، ونقول: نبي واحد أفضل من جميع الأولياء

हम किसी वली को किसी नबी पर फज़ीलत नहीं देते, हमारा ये अक़ीदा है कि एक नबी तमाम औलिया से अफ़ज़ल है।

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(109) ونؤمن بما جاء من كراماتهم، وصح عن الثقات من رواياتهم

हम औलियाऐ किराम की करामात को मानते हैं और उनकी रिवायत को भी मानते हैं जो सिकात से साबित हैं।

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(110)  ونؤمن بأشراط الساعة منها: خروج الدجال، ونزول عيسى ابن مريم عليه السلام من السماء، ونؤمن بطلوع الشمس من مغربها، وخروج دابة الأرض من موضعها

हम अलामाते क़ियामत पर यक़ीन रखते हैं। मसलन दज्जाल का ख़ुरूज, ईसा इब्ने मरयम अलैहिस्सलाम का आसमान से नाज़िल होना, सूरज का मग़रिब से तुलूअ होना, दाब्बातुल अर्ज़ का अपनी जगह से निकलना।

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(111)  ولا نصدق كاهنا ولا عرافا، ولا من يدعي شيئا يخالف الكتاب والسنة وإجماع الأمة

हम किसी नजूमी को सच्चा नहीं समझते और ना ही उसे सच्चा मानते हैं जो किताब और सुन्नत और इजमा के ख़िलाफ़ कोई दावा करे।

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(112) ونرى الجماعة حقا وصوابا، والفرقة زيغا وعذابا

हम “जमाअत" को हक़ और दुरुस्त समझते हैं और फ़िर्काबंदी को कजरवी और अज़ाब गरदानते हैं।

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(113) ودين الله في الأرض والسماء واحد، وهو دين الإسلام، قال الله تعالى: (إن الدين عند الله الإسلام) ، وقال تعالى: (ورضيت لكم الإسلام دين)ا
अल्लाह का दीन ज़मीन और आसमान में सिर्फ एक ही है और वो दीन इस्लाम है जैसा कि अल्लाह ने

इरशाद फ़रमाया है :

"बिलाशुबा दीन अल्लाह के नज़दीक इस्लाम ही है"

और फ़रमाया :"

और मैंने इस्लाम को तुम्हारे लिए बतौर दीन पसंद कर लिया"।

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(114)  وهو بين الغلو والتقصير، وبين التشبيه والتعطيل، وبين الجبر والقدر، وبين الأمن والإياس

ये दीन इफ़रात और तफ़रीत, तशबीह और ताअतील, जब्र और क़दर और बेख़ौफ़ी और नाउम्मीदी के बीच है।

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(115)  فهذا ديننا واعتقادنا ظاهرا وباطنا، ونحن براء إلى الله من كل من خالف الذي ذكرناه وبيناه
ونسأل الله تعالى أن يثبتنا على الإيمان، ويختم لنا به، ويعصمنا من الأهواء المختلفة، والآراء المتفرقة، والمذاهب الردية، مثل المشبهة والمعتزلة والجهمية والجبرية والقدرية وغيرهم؛ من الذين خالفوا السنة والجماعة، وحالفوا الضلالة، ونحن منهم براء، وهم عندنا ضلال وأردياء، وبالله العصمة۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔

ये हमारा दीन है और ज़ाहिर और बातिन में यही हमारा अक़ीदा है। हम हर उस इन्सान से बरी हैं जिसने इन बातों की मुख़ालिफ़त की, जिनका हमने इस किताब में तज़किरा किया।

और हम अल्लाह से सवाल करते हैं कि हमको ईमान पर साबित-क़दम रख

और हमारा ख़ात्मा ईमान पर फ़रमा

और हमको मुख़्तलिफ़ ख़ाहिशात से बचा

और मुख़्तलिफ़ मश्वरों से बचा

और
ख़राब मज़ाहिब से बचा

जैसे मुशबहा और मोतज़िला

और जहमीयाह वग़ैरा

और इनके अलावा उन लोगोँ में से जिन्होंने सुन्नत और जमात की मुख़ालिफ़त की

और गुमराही के दोस्त बन गए और हम उनसे बरी हैं

और वो हमारे नज़दीक गुमराह और घटिया है अल्लाह ही के साथ इस्मत और तौफ़ीक़ है

🌹 और अल्लाह रहमत और दुरूद नाज़िल फ़रमाए हमारे नबी मुहम्मद صلى الله عليه وسلم पर उनकी ऑल पर और उनके सहाबा किराम पर और सलामती नाज़िल फ़रमाए
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और तमाम तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं।
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मजमून पूरा हुवा ..........
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